संस्कृत साहित्य में प्रतीक: आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक

प्रतीक धार्मिक, दार्शनिक एवं आध्यात्मिक भावों मान्यताओं का स्थूल रूप है। जिसका सम्बन्ध मानव स्वभाव से है। प्रतीक के द्वारा सूक्ष्म रूप से वस्तु विशेष का स्पष्टतया बोध हो जाता है। चित्र, साहित्य, मूर्ति, संगीत आदि सभी कलाओं में प्रतीक का प्रभाव रहा है। भारतीय परम्परा में अध्यात्म एवं सांस्कृतिक भावना...

Full description

Saved in:
Bibliographic Details
Published inPrachi prajna (Online) Vol. VIII; no. 15; pp. 1 - 5
Main Author रिगज़िन यंगडोल
Format Journal Article
LanguageEnglish
Published SUGYAN KUMAR MAHANTY 01.12.2022
Subjects
Online AccessGet full text

Cover

Loading…
More Information
Summary:प्रतीक धार्मिक, दार्शनिक एवं आध्यात्मिक भावों मान्यताओं का स्थूल रूप है। जिसका सम्बन्ध मानव स्वभाव से है। प्रतीक के द्वारा सूक्ष्म रूप से वस्तु विशेष का स्पष्टतया बोध हो जाता है। चित्र, साहित्य, मूर्ति, संगीत आदि सभी कलाओं में प्रतीक का प्रभाव रहा है। भारतीय परम्परा में अध्यात्म एवं सांस्कृतिक भावनाओं के आधार पर प्रतीक का आरम्भ हुआ। पद्म, स्वस्तिक, शंख, सूर्य, वृक्ष आदि माङ्गलिक प्रतीक भारतीय संस्कृति के गूढ़ रूप को प्रतिबिम्बित करते हैं। आदिकाल से प्रतीक भावाभिव्यक्ति का साधन रहा है। लोककथाओं, प्रतिमाओं, लोकचित्रों, रेखाङ्कनों एवं चित्रकारिता के माध्यम से संस्कृति एवं समाज की भावनाओं का निरूपण होता है। प्रतीक के माध्यम से प्रकृति के उपादानों की पूजा का विधान भी रहा है। वस्तुतः प्रतीक व्यञ्जनात्मक रूप या भावनात्मक रूप के माध्यम से विशिष्ट अर्थ को व्यक्त करता है।
ISSN:2348-8417